...

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ख़ुद ही सवाल,ख़ुद ही ज़वाब
अपने मन से लड़ते लड़ते
खुद से ही झगड़ते झगड़ते
अपने आप से तर्क करते करते
हम आख़िर दुनिया से लड़ना सीख जाते हैं
बहुत मज़बूत बन जाते हैं
एक भंवरजाल है ये संसार
जिसमें फँसे हुए हम सब
छूटने को छटपटाते हैं
एक कैद से जिसमें अदृश्य जकड़े हुए हैं हम
कभी रोते हैं अकेले में औऱ कभी
महफ़िल में कहकहाते हैं
जानते हैं कि सब झूठ है,छलावा है
फ़िर भी नफ़रतों को ठुकराते हुए
स्नेह के बीज सींचते ही जाते हैं
शायद कोई पौधा लहलहा उठे
फूलों से लदा वृक्ष बने
फूल झरें धरती को ढक दें
स्नेह की बरसात हो और हम
फ़िर से जी उठें
फ़िर से जी उठें
फ़िर से जी उठें ।।



© Geeta Yadvendu