...

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संयम
मायके से विदा होती लड़कियाँ
सीखती हैं माँ से संयम का पाठ;
खोयछे में सिर्फ अक्षत,
हल्दी की गांठें, दूब ही नहीं होते!
होती हैं, उनके साथ सीखों की
अशर्फियाँ भी..
ससुराल में यही तो
काम आती हैं,
इसी विश्वास के साथ
डोली में विदा करते हुए भी,
कान में फुसफुसा जाती है माँ..
मायके के इज्जत की
जिम्मेदारी लिए,
विदा होती बेटियाँ...
हाँ.. ये संयम ही तो है
जिसकी डोर की छोर को पकड़े
ज़िन्दगी की दूसरी छोर तक;
कब पहुँच जाती हैं
पता ही नहीं चलता!!!
© anam