Rahat indori sahab
जितनी कसमें थीं सब थीं शर्मिंदा
जितने वादे थे सर झुकाए थे.
सब किताबें पढ़ी पढ़ाई थीं
सारे किस्से सुने...
जितने वादे थे सर झुकाए थे.
सब किताबें पढ़ी पढ़ाई थीं
सारे किस्से सुने...