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Rahat indori sahab
जितनी कसमें थीं सब थीं शर्मिंदा
जितने वादे थे सर झुकाए थे.
सब किताबें पढ़ी पढ़ाई थीं
सारे किस्से सुने सुनाये थे.
सिर्फ दो घूँट प्यास की ख़ातिर
उम्र भर धूप में नहाये थे.
वरना औकात क्या थी सायों की
धूप ने हौंसले बड़ाये थे.
आज काँटों भरा मुक़द्दर है,
हमने गुल भी बहुत खिलाये थे.
जितने वादे थे सर झुकाए थे.
सब किताबें पढ़ी पढ़ाई थीं
सारे किस्से सुने सुनाये थे.
सिर्फ दो घूँट प्यास की ख़ातिर
उम्र भर धूप में नहाये थे.
वरना औकात क्या थी सायों की
धूप ने हौंसले बड़ाये थे.
आज काँटों भरा मुक़द्दर है,
हमने गुल भी बहुत खिलाये थे.
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