...

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उलझन
कभी कभी ज़िंदगी इतनी उलझ सी जाती है
कि चाहकर भी सुलझन समझ नहीं आती है....

ज़िंदगी की चाहत अजीबोगरीब है,
साँसें तो हैं लेकिन मौत भी करीब है,
वक़्त के दायरे से गुज़रती है ये ऐसे,
जैसे ख़्वाहिशों के मेले में बदनसीब है।

पल पल सिमटती मुस्कान के साथ,
खिलती धूप भी अब लगती रक़ीब है,
बेफ़िक्री में फ़िक्र है कुछ उलझी सी,
उलझन की ना जाने कैसी नक़ीब है।

बदल गए सारे मायने जीने के यूँ तो,
अब चाहतों में इतनी क्यूँ तहज़ीब है,
फक़त एक इस उम्र के लिए ये सब,
इश्क़ ही बस बन गया मेरा तबीब है।
#JyotsanaArora #lifediary
© Jyotsana Arora