...

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लाइनें
कहीं लाइनें लंबी हो चली हैं, कहीं छोटी ही चली है
इन्सान जानवर हो चला और इंसानियत किताबे हो चली है।

धूप में भी अंधेरा हो गया, जब देखा खुद को आएने में
में, मेरा वक्त अकेला हो गया।

दिन में भी दरिंदे मिल जाएंगे, रात में भी दरिंदे मिल जाएंगे
टटोलना ज़रा दिन और रात को उनमें से कुछ अपने मिल जाएंगे।

जहरीली हवाओं से पत्ते गिरने लगे, कुछ लोगो ने कहा पेड़ लगाओ।

ऐ अंधेरे देख तू काला हो गया, बोलने वाला आएना था साहब, जब टकराहट हुई आएने की तो एक काला और एक आएना हो गया।
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