60 साल ( कविता )
60 साल
सब समझने लगे मुझे बुढढा
क्योकि मै साठ साल का हो गया ।
परसों कि तो बात है मै था नन्हा बालक
रोज सबेरे स्कूल था जाना टीचर जी की डांट को खाना।
कल ही कि तो बात है रोज सबेरे आफिस जाना
आफिस मे सहकर्मी को पटाना
घर आकर रूठ बीबी को मनाना
मन है अभी भी चचल मेरा
अब बालों का हो गया सबेरा
घुटने थोड़ा सुजा है मेरा
तुम ही जो कह सकते हो
मै नहीं कहना चाहता हूँ
कि मै बुढढा हो गया
पर मै साठ साल का हो गया ।
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सब समझने लगे मुझे बुढढा
क्योकि मै साठ साल का हो गया ।
परसों कि तो बात है मै था नन्हा बालक
रोज सबेरे स्कूल था जाना टीचर जी की डांट को खाना।
कल ही कि तो बात है रोज सबेरे आफिस जाना
आफिस मे सहकर्मी को पटाना
घर आकर रूठ बीबी को मनाना
मन है अभी भी चचल मेरा
अब बालों का हो गया सबेरा
घुटने थोड़ा सुजा है मेरा
तुम ही जो कह सकते हो
मै नहीं कहना चाहता हूँ
कि मै बुढढा हो गया
पर मै साठ साल का हो गया ।
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