...

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क्यों छोड़े जा रहा हूँ?
कुछ ने मुझे छोड़ दिया
कुछ को खुद मैं ही छोड़े जा रहा हूँ।

चाव से मिला करता था जिनको
आज उन्हीं से मुहँ मोड़े जा रहा हूँ।

भीड़ थी हमदम के दिए तोहफ़ों की
आख़िरी बार देखकर तोड़े जा रहा हूँ।

गुनाह तो नहीं किया किसीका कोई बस
छुप जाने को मुखोटे ओढ़े जा रहा हूँ।
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