...

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आशियाने
बिखरे सपने,
ढूँढते रहते "अपने"।
लगे बेहद टूटे,
न जाने किसने लूटे।

कैसे बने घर?
हुए जज़्बात पत्थर।
बाशिंदे झूठे,
जो खुद से थे रूठे।
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