...

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अनसुनी...
जो सुनी न गई अब तक कभी
क्या बात उसकी कोई..कभी सुन पाएगा
प्यार हिस्से का उसके..जो रह ही गया
क्या वो प्यार..उसे कभी मिल पाएगा

टूटे फूटे सपने सलोने उसके
क्या कभी किन्ही हालातों में.. सिमट पाएगा
एहसासों की बहती धाराओं में
क्या उसका वो वाला वजूद.. यूँ ही कतरा कतरा बह जाएगा

भूल गई खुद को ही वो
ज़माने भर को सुलझाते सुलझाते
क्या मालूम था उसको कि एक दिन
ज़माना ही उलझाकर उसको.. नैया उसकी डुबायेगा

ज़रा ठहरो..
जद्दोजहद बहुत गहरी ठहरी उसकी
शब्दों में क्या कोई ढूँढ पाएगा..
बेड़ियों में बंधी हो कसक जिसकी
बहते अश्कों की कीमत
वो ज़ालिम
क्या ही कभी समझ पाएगा...




© bindu