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पीपल का पेड़
पीपल का एक पेड़ था मैं, उम्र में अधेड़ था मै, अंधेरे में घिर गया, तेज तूफान में गिर गया, आधी जड़ें अंदर, आधी जड़ें बाहर, अधमरा मैं पड़ा सड़क पर, पैर रख कर लोग गुजरते, पत्ते हरे जानवर कुतरते, जब खड़ा था तो पूजा मुझको, पड़ा हूँ तो कुचला मुझको, कल बस्ती के कुछ लोग आये, पास मेरे आकर फुसफुसाये, एक ने कहा, बचीं हुईं इसकी जड़ें काटते, दुसरा बोला हां, फिर जल्द सुखे तो आपस में बाटते, फिर कुछ पल में मेरी जड़ें काट दी, चुल्हा जलाने के लिए आपस में बाट दी, गर्व था मुझे खुद पर, जिन्दा हूँ तो पूजा जाता, मरने पर भी पूजा के काम आता, अभिमान मेरा छट गया, मेरी हर शाखा का टुकड़ा-टुकडा़ बटन गया, कुछ बचे टुकडों को दीमक खाती, मुस्कराकर मिट्टी में मिलाती। (डी एस गुर्जर "देव ")