...

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"सब एक सा नहीं रहता, तुम्हारे न होने से"
सब एक सा नहीं रहता, तुम्हारे न होने से,
सब छूटता जाता जैसे, तुम्हें खोने से,
आहटो में जैसे खामोशी छा जाती है,
और यादें रोती जैसे बैठे हर कोने में,

जवाब भी खो जाता सवालों के घेरों में,
रातें गुजरती फिर मयखाने के डेरे में,
भटकता मैं ढूंढता जवाब हर किस्से में,
अधूरा रह गया उस सफ़र के हिस्से में,

कुछ नहीं सम्हल पाता अकेले होके,
जैसे जैसे दिन गुजरात अकेले रोने से,
सब एक सा नहीं रहता, तुम्हारे न होने से,
सब छूटता जाता जैसे, तुम्हें खोने से !!

© Rohit Kumar Gond
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