...

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हे रात!
#चाँदसमुद्रसंवाद
हे रात!
थोड़ा तो धीरे ढल, क्यों तू भी इस समुन्दर की तरह भागी चली जा रही है
क्या तुझे भी अब ये लोग पसंद नही आ रहे हैं
क्या तुझसे भी अब ये बुराईयां देखी नही जा रही है
सुमन्दर का तो कोई ठिकाना ही नहीं होता,फिर भी वो एक किनारे पर रुक जाता है
फिर तू क्यों नहीं?
हे रात! थोड़ा तो धीरे ढल
कभी हम लोगो को भी तो समझने की कोशिश कर