...

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नन्हीं सी डोर
नन्हीं सी डोर पकड़
ऊँची उड़ाने सोचकर
निकल जाऊँ उस डगर
हो आज़ादी का आश्रा हर पहर
नन्हीं सी डोर पकड़
उड़ जाऊँ उस पार
बैख़ौफ़ हो जाए वो मंजर
जब टूट जाए समाज से बधी ज़ंजीर
नन्हीं सी डोर पकड़
अब जी लूँ बस बेखबर