...

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किसका था..
जो याद बन कर नब्ज़ मे हमारी बहता था ।
​है तुम्हें भी क्या इल्म वो चेहरा किसका था ।।

​​हर दफा पूछती हैं ये निगाहें तन्हा रास्तों से ।
​क्यूँ सफ़र पर हो कल इंतजार किसका था ।।

​लगा हुआ है ये मज़मा दर पर मेरी मौत का ।
​कि अब कब्र से क्या जाने कौन किसका था ।।

​खबर किसे है किसी की यहाँ किस से पूछें ।
​सबके हिज़ाबों में बंद वो खुदा किसका था ।।

​बह न जाए अश्क़-ए-अब्र मे ये वज़ूद मेरा ।
​डूबकर दरिया से आया वो इश्क किसका था ।।

​फ़िज़ाऐं ऐसी कि 'अल्फाज' तू यूंँ बिखरा था ।
​रूखसती पे तेरी आखिर वो नाम किसका था ।।


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