...

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चरित्रहीन

यदि हूँ निर्वसन मैं
तो तुम्हारा आकृष्ट क्यों हूँ
हूँ यदि कामिनी
रति सा तुम्हारा दृष्ट क्यों हूँ
नेसर्गिक हूँ यदि उन्मुक्त
कहो मैं धृष्ट क्यों हूँ
संदीप्त तुम भी इसी पथ पर
तो मैं ही पथभ्रष्ट क्यों हूँ


© Ninad