...

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भूले हुए रिश्तों की बारी
भरी नहीं जो सालों से, उन दर्द के रिश्तों की बारी
बड़े दिनों मे आई है,भूले हुए रिश्तों की बारी

कई बड़े ये जानेंगे कि नन्हें नादान और भी है
नए परिंदे सीखेंगे कि कई आसमां और भी है

हाथ बड़े छोटे छोटे है इन मासूम फरिश्तों के
कैसे सुलझाएंगे धागे ये उलझे हुए रिश्तों के

क्या जागेंगे दर्द पुराने, गम के मौसम सर्द पुराने
क्या फिर से अपने साथी को,देखेंगे हम दर्द पुराने

एक मां समझाती है, रस्ता डोरी सुलझाने का
एक मां को डर है,खुशियों के आंसू मे ढल जाने का

डर और आशा दोनों,वो ही हर बार समझता है
औलाद की मन की बातों को केवल परिवार ही समझता है

कितनी भी तैयारी करलो मन तैयार नहीं होता
टूटा प्रेम वो दरिया है जो हमसे पार नहीं होता

भरी नहीं जो सालों से, उन दर्द की किश्तों की बारी
बड़े दिनों बाद आई है, भूले हुए रिश्तों की बारी



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