...

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ढलती हुई रात....
ए खामोश सी ढलती हुई रात
रुक तो जरा, कर ले कुछ घड़ी बात

यूँ जो अनवरत सफर तय करती है
ना जाने कितने अंधेरे खुद में गुम करती है

छुपा लेती है कई सिसकियों को
कितनो के अश्कों से खुद को भीगोती है

बैठ जरा दो पल, थोड़ा थम जा जरा,
बाँट ले जो भी है, कहीं तेरे दिल में भरा

लेकर इतना दर्द, आखिर तू कैसे गुजरती है
तू तड़पती तो होगी, क्या आहें भी भरती है

चाहे तू कुछ ना बता, हर बात समझ आती है
मेरी कहानी से जब तेरी कहानी मिल जाती है


© * नैna *