...

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वो एक मसल्ला....
तकलीफें तो बहुत दी जिंदगी ने उसे
शिकायतों का भी दौर रहा
थोड़ा परेशान हो मुकद्दर को कोसना भी लाज़मी था
रुसवा भी था वो ,उन हसरतों से..जो जिंदगी से लगाई थी
तक़दीर में उसके क‌ई मसल्ले भी लिखें गये
गर कुछ और होना बाकी भी था
पर अफ़सोस उस एक मसल्ले ने रुह भी ना बख्शी उसकी...
बिखरा वो इस कदर कि..ना वादे रास आयें, ना वफ़ा रास आयी
दिल लगा उसका किसी बेवफा से जब
उसके हिस्से बस क़यामत की याद आयी..
भारी पड़ा वो मसल्ला उसे जो,
जिस्म और जान दोनों ले गया...!!

(waise likhne wale ne shi likha hai ki..
kash!khin aisa hota ke do dill hote seene mei
ek toote bhi jata ishq mei toh takleef na hoti jeene mei)


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