आत्म सम्मान आधार है
*आत्म सम्मान Self Esteem ही सहज, सुखद शान्त दिव्य जीवन का आधार*
*आत्म सम्मान, स्वमान, सम्मान और स्वाभिमान में अन्तर होता है। ये चारों ही मन की स्थितियां होती हैं। ये चारों ही अलग अलग स्थितियां हैं। लेकिन आत्मा के मन की परतें अलग अलग होते हुए भी आत्मा के पास मन तो एक ही है। इसलिए ये स्थितियां एक दूसरे से गुंथी हुईं भी हैं। अर्थात् एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है। इन सबका प्रभाव परस्पर सब पर पड़ता है। भले ही इन स्थितियों में थोड़ा ही फर्क होता है। लेकिन वह फर्क भी समझने जैसा है। कोई भी जीवात्मा मनोजगत में जीते हुए इन मानसिक स्थितियों की अनुभूतियों में ही रहती है। यह तो हो सकता है कि प्रत्येक मनुष्य की ये मानसिक स्थितियां मन्दता और तीव्रता के दौर से तो गुजरती रह सकती हैं। जीवन में कोई भी मनुष्य आत्मा इन मानसिक स्थितियों की अनुभूतियों के बिना नहीं होती है। मनुष्य के जीवन जीने और स्वयं के द्वारा कर्म करने की सबसे पहली और श्रेष्ठतम विधि यही है कि मनुष्य अपने आत्म सम्मान को पहचान कर जीवन जिए। कर्मक्षेत्र में कर्मयोग के अनुसार क्षेत्र क्षेत्रज्ञ के इस गुणात्मक ज्ञान के इलावा दूसरी कोई अन्तःप्रज्ञा नहीं है। 🙏✋👍*
*आत्म सम्मान, स्वमान, सम्मान और स्वाभिमान में अन्तर होता है। ये चारों ही मन की स्थितियां होती हैं। ये चारों ही अलग अलग स्थितियां हैं। लेकिन आत्मा के मन की परतें अलग अलग होते हुए भी आत्मा के पास मन तो एक ही है। इसलिए ये स्थितियां एक दूसरे से गुंथी हुईं भी हैं। अर्थात् एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है। इन सबका प्रभाव परस्पर सब पर पड़ता है। भले ही इन स्थितियों में थोड़ा ही फर्क होता है। लेकिन वह फर्क भी समझने जैसा है। कोई भी जीवात्मा मनोजगत में जीते हुए इन मानसिक स्थितियों की अनुभूतियों में ही रहती है। यह तो हो सकता है कि प्रत्येक मनुष्य की ये मानसिक स्थितियां मन्दता और तीव्रता के दौर से तो गुजरती रह सकती हैं। जीवन में कोई भी मनुष्य आत्मा इन मानसिक स्थितियों की अनुभूतियों के बिना नहीं होती है। मनुष्य के जीवन जीने और स्वयं के द्वारा कर्म करने की सबसे पहली और श्रेष्ठतम विधि यही है कि मनुष्य अपने आत्म सम्मान को पहचान कर जीवन जिए। कर्मक्षेत्र में कर्मयोग के अनुसार क्षेत्र क्षेत्रज्ञ के इस गुणात्मक ज्ञान के इलावा दूसरी कोई अन्तःप्रज्ञा नहीं है। 🙏✋👍*