कौन आएगा
है धरा उदघोष करती लालिमा आकाश की ।
शुष्क होते ताल पोखर क्यों प्रतीक्षा प्यास की ।
चूक गया गर आज फिर तु कल कहाँ से पाएगा ?
खुद उठो तिनके जुटाओ , घर परिंदों का बनाने कौन आएगा ?
यह जमाना है तेरे संग जब तलक तू होश में है ।
हो जरा मगरूर तू क्यों बेवजह ही जोश में है ।
खंडहर में रौशनी तू...
शुष्क होते ताल पोखर क्यों प्रतीक्षा प्यास की ।
चूक गया गर आज फिर तु कल कहाँ से पाएगा ?
खुद उठो तिनके जुटाओ , घर परिंदों का बनाने कौन आएगा ?
यह जमाना है तेरे संग जब तलक तू होश में है ।
हो जरा मगरूर तू क्यों बेवजह ही जोश में है ।
खंडहर में रौशनी तू...