...

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दिल से कहूं तो!
दुनिया भर की मटमैली
धूल फांक रहा हूं मैं,
फिर भी, पत्थर दिलों के
भीतर झांक रहा हूं मैं,
नाउम्मीदी में भी उम्मीद की
लौ ताक रहा हूं मैं,
फ़िज़ूल मर्यादाओं-मूल्यों की
कथा बांच रहा हूं मैं,
ख़ुद को कुछ हद तक, अब तो
मूर्ख आंक रहा हूं मैं,
मगर, दिल से कहूं तो,
दुनियावी दरारें पाट रहा हूं मैं,
कटते-फटते, उखड़ते-उधड़ते
रिश्ते टांक रहा हूं मैं,
बढ़ न जाएं दूरियां और—
इस खातिर प्रेम-स्नेह के
टूटे धागे गांठ रहा हूं मैं!

—Vijay Kumar
© Truly Chambyal