शहर में एकांतीता।.....
#विश्व_कविता_दिवस
मैं एक शहर में घूमने गया था,
जो सुनसान और खामोश था।
यहाँ कोई भी आवाज़ नहीं थी,
सिर्फ एकांत में थी ये धरती।
सड़कें खाली थीं बिल्कुल,
मैं तनहा सा था जैसे जीता हुआ।
लोग नहीं थे यहाँ पर,
बस आकाश और ज़मीन के बीच कुछ था रहा।
मैंने एक झील देखी वहाँ,
जो सुनसान और शांत थी।
पानी की सतह पर थी ना कोई लहर,
थी समझ में नहीं उसकी यह कहानी।
यह जगह थी जिसकी खूबसूरती में,
कुछ ऐसा था जो छू गया मेरे हृदय को।
इस सुनसानता में था कुछ ज़िंदगी जैसा,
जिससे मेरी रूह को मिला सुकून बहुत।
यहाँ रुकना था कितना चाहिए,
मैं सोचता हूँ अब भी।
शांति जो मिली थी उस समय,
मेरे जीवन में सुख लायी थी।
इस सुनसान जगह में जो था अहसास,
वह मुझे समझाता रहा हर समय।
इस खामोशी में जो बातें होती थी,
वह थी मेरे साथ सदा हर पल।
इस शहर में था जो खामोशी का ज़रिया,
वह मुझे प्रेरित करता रहा हर दिन।
© 𝓚.𝓖𝓪𝓷𝓰𝓪𝓭
मैं एक शहर में घूमने गया था,
जो सुनसान और खामोश था।
यहाँ कोई भी आवाज़ नहीं थी,
सिर्फ एकांत में थी ये धरती।
सड़कें खाली थीं बिल्कुल,
मैं तनहा सा था जैसे जीता हुआ।
लोग नहीं थे यहाँ पर,
बस आकाश और ज़मीन के बीच कुछ था रहा।
मैंने एक झील देखी वहाँ,
जो सुनसान और शांत थी।
पानी की सतह पर थी ना कोई लहर,
थी समझ में नहीं उसकी यह कहानी।
यह जगह थी जिसकी खूबसूरती में,
कुछ ऐसा था जो छू गया मेरे हृदय को।
इस सुनसानता में था कुछ ज़िंदगी जैसा,
जिससे मेरी रूह को मिला सुकून बहुत।
यहाँ रुकना था कितना चाहिए,
मैं सोचता हूँ अब भी।
शांति जो मिली थी उस समय,
मेरे जीवन में सुख लायी थी।
इस सुनसान जगह में जो था अहसास,
वह मुझे समझाता रहा हर समय।
इस खामोशी में जो बातें होती थी,
वह थी मेरे साथ सदा हर पल।
इस शहर में था जो खामोशी का ज़रिया,
वह मुझे प्रेरित करता रहा हर दिन।
© 𝓚.𝓖𝓪𝓷𝓰𝓪𝓭