...

7 views

लड़का होना आसान नहीं है
लड़को से लोगो को न जानें
कितनी शिकायत होता है

तकलीफ में उम्र की कोई सीमा
मर्द पर नहीं लागू होता है

अपनी हर जरूरत कीखुशियाँ
को मार कर वो फिर भी चुप रहता है

कॉलेज हॉस्टल काम मे दिन भर
थक कर रात में सब के साथ हँसता है

अंदर ही अंदर कई सारी
बातें उसको कचोटता रहता है

समंदर सी आँखे से फिर भी
एक कतरा नहीं बहता है

एक दर्द लोगो को तोड़ देता है और
मर्द हर दिन नए नए बवंडर से लड़ता है

वो बेसब्र रहता है कुछ कहता नहीं
जो अपने अंदर बहूत कुछ सहता है

तोड़ कर अपने ज़िंदगी के रंगीन
सपने वो फिर भी चलता है

नसीब का खेल समझ कर
दस से पाँच तक में सिमट जाता है

सब कुछ खाक हो जाने के बाद
भी मर्द को चमकना परता है

जैसे एक मोम को उसकी रौशनी
के लिए खुद को पिघलाना परता है

© रौशन rosi...✍️🍁