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गुमनाम.....🤫
महफिल अजीब है ये मंज़र अजीब है,
जो उसने चलाया वो खंजर अजीब है,
ना डूबने देता है ना उबरने देता है,
उसकी आँखों का वो समंदर अजीब है।
नशा जरूरी है ज़िन्दगी के लिए,
पर सिर्फ शराब काफ़ी नहीं बेखुदी के लिए,
किसी की मस्त निगाहों में डूब जाओ यार,
बड़ा हसीन समंदर है खुदकुशी के लिए।
उठती नहीं है आँख किसी और की तरफ,
पाबन्द कर गई किसी की नजर मुझे,
ईमान की तो ये है कि ईमान अब कहाँ,
काफ़िर बना गई तेरी काफ़िर नजर मुझे।
© ❤️khushi❤️......
जो उसने चलाया वो खंजर अजीब है,
ना डूबने देता है ना उबरने देता है,
उसकी आँखों का वो समंदर अजीब है।
नशा जरूरी है ज़िन्दगी के लिए,
पर सिर्फ शराब काफ़ी नहीं बेखुदी के लिए,
किसी की मस्त निगाहों में डूब जाओ यार,
बड़ा हसीन समंदर है खुदकुशी के लिए।
उठती नहीं है आँख किसी और की तरफ,
पाबन्द कर गई किसी की नजर मुझे,
ईमान की तो ये है कि ईमान अब कहाँ,
काफ़िर बना गई तेरी काफ़िर नजर मुझे।
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