बच्चपन ऐसा ही तो होता था।
मां के गोद में सोया हुआ
बुढ़िया के बालों में खोया हुआ
ना ही कोई तनाव ना कोई फिक्र
क्या करते हो बेटा ?
ऐसी बातों का होता ना था जिक्र
अपने ही बुने सपनों में
खुद का रंग होता था
जब खिलौने मिट्टी के पर खेल सच्चा होता था
बच्चपन ऐसा ही तो होता था
स्कूल के बाद शाम का का इंतजार
जब सिर्फ चॉकलेट की दुकान हमारे लिए थी बाजार
जब परीक्षा से ज्यादा भूत का डर होता था
माँ के हाथ से खाना
पापा के साथ नहाना
छोटी छोटी बातों में खुशी
और रोने में दुविधा का हल होता था
बच्चपन ऐसा ही तो होता था।
बुढ़िया के बालों में खोया हुआ
ना ही कोई तनाव ना कोई फिक्र
क्या करते हो बेटा ?
ऐसी बातों का होता ना था जिक्र
अपने ही बुने सपनों में
खुद का रंग होता था
जब खिलौने मिट्टी के पर खेल सच्चा होता था
बच्चपन ऐसा ही तो होता था
स्कूल के बाद शाम का का इंतजार
जब सिर्फ चॉकलेट की दुकान हमारे लिए थी बाजार
जब परीक्षा से ज्यादा भूत का डर होता था
माँ के हाथ से खाना
पापा के साथ नहाना
छोटी छोटी बातों में खुशी
और रोने में दुविधा का हल होता था
बच्चपन ऐसा ही तो होता था।