...

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मैं निर्भया...
क्यों निर्भया नाम दिया तुमने मुझे?
जानते हो कैसे भय से गुजरी हूं मैं?

क्या जताना चाहते हो ये नाम देकर?
बस तुम्हारा कर्तव्य पूरा हुआ मेरे प्रति?

मेरा चीखना किसने सुना कोई नहीं था,
ये तो तुमने बाद में कहा ये सही नहीं था।

वो जो मेरी आत्मा को छलनी कर रहे थे,
तुमको लगता है वो कानून से डर रहे थे?

समाज कहते हो जिसे वो जंगल हो गया है,
वहशी जानवरों के बीच इंसान खो गया है।

मैं निर्भया जिसने भय को पास से देखा है,
क्या सोच कर तुमने निर्भया नाम रखा है?

तुमने कहा ऐसे कपड़े मत पहनो मैंने माना,
तुमने कहा रात को बाहर मत जाओ माना।

पर फिर भी तो मैं बच कहां पाई दरिंदों से?
अब क्या सवाल करूं समाज के बाशिंदों से?

अब किससे क्या पूछूं? कौन जवाब देगा?
मीडिया या कोई नेता अब क्या कर लेगा?

मैं लड़की थी इतना ही तो कसूर था मेरा,
भय में बीता निर्भया का हर सांझ व सवेरा।

जानती हूं उन लोगों को सज़ा दिलवाओगे।
पर क्या एक और निर्भया को बचा पाओगे?

Santoshi