...

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मैं बोल रही हूँ
उस दिन ऑफिस में
लैंडलाइन पर घंटी बजी थी
अचानक उसका ख़्याल आया
कैसी होगी वो ? क्या कर रही होगी ?

मैंने फोन उठाया और बोला,
" हैलो "
सामने से आवाज़ आई,
" मैं बोल रही हूँ "

एक सिरहन सी दौड़ गई मुझ में
बरसों बाद उसकी आवाज़ सुनी थी
साफ़ पहचान लिया था मैंने
ऐसे ही बात शुरू करती थी वो फोन पर
अपना हक जताते हुए हमेशा की तरह

मैंने जवाब दिया
" मैं सुन रहा हूँ "
जैसे हथियार डाल दिए हों हमेशा की तरह

© 'क़फ़स'

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