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कल जब न चाहकर तेरे शहर का सफर हुआ
कल जब न चाहकर तेरे शहर का सफर हुआ
आँखों से आसूं का बे तहाषा गुज़र हुआ

मैं अपनी तड़प का तुझे हवाला क्या दूँ
मेरी नज़रों से ओझल फिर हर मंज़र हुआ

अफ़सोस के राह मिली भी हमें गर मंज़िल नहीं
मिलते मिलते भी हमसे दूर हमसफ़र हुआ

ज़िन्दगी ख्याल ए यार मैं ग़र्क़ कर दी
आँख लगते लगते हर रात सोना दूबर हुआ

गुज़रे हैं बरस छे तेरा ग़म उठाये हुए
हैरत यूँ हुई कि तेरे बाद हर दर्द बे असर हुआ

सोचा नहीं था सारिम इतना कभी तरसेगा
मेरे यार तुझे चाहने का ख़सारा उम्र भर हुआ


© Sarim