...

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जिंदगी के रास्ते
निकले थे सफर पर हम जब मंजिल की तलाश में....
उस सफर में न जाने कितने ही रास्ते मिले
और न जाने कितने ही रास्तों को हमने ठुकराया था
यह किस्मत तो बेवजह बदनाम है
हमने खुद अपने ही वक्त को आजमाया था,,,!!

जीवन भर हम ठहराते रहे वक्त को ही दोषी....
न्याय-अन्याय के चक्कर में हमने
अपने ही कीमती वक्त को गवाया था
जगाते रहे मन में, मंजिल तक पहुँचने की चाह
रास्ते पर चलने का ख्वाब तक न आया था,,,!!

बिना कुछ सोचे-समझे ही हम लेते रहे.....
अपनी जिंदगी के बड़े बड़े निर्णय
फिर भी इन निर्णयो में दोष नजर न आया था
लगाते रहे अपनी गलती का दोष लोगों पर
अंत में वक्त ने हमें सबक सिखाया था,,,!!

तलाशते रहे हम उम्रभर दूसरों में खुशियाँ....
अपनी खुद की ही पहचान को हमने
अपने आपसे ही दूर भगाया था
उठाया जब मन ने अकेलेपन का भार
अपने साथ खड़ा, हमें कोई नज़र न आया था,,,!!

जिंदगी भर हम ठुकराते रहे, संघर्ष के रास्तों को....
बढ़ाते रहे आसान रास्तों पर अपने कदम
इन ही रास्तों का मोहताज खुद को बनाया था
डरते रहे चुभ न जाए कांटा कहीं पाँव में
फूलों को छोड़ सदा के लिए कांटों को अपनाया था,,,!!

पल-पल हर-पल बस करते रहे वक्त बर्बाद.....
अपने ही वक्त को हमने
अपने ही हाथो से, मिट्टी में मिलाया था
निकल चुका था जब यह वक्त हमसे कही दूर
अंत में पछतावा ही हमारे हाथ लग पाया था,,,!!

© Himanshu Singh