...

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जिंदगी के रास्ते
निकले थे सफर पर हम जब मंजिल की तलाश में....
उस सफर में न जाने कितने ही रास्ते मिले
और न जाने कितने ही रास्तों को हमने ठुकराया था
यह किस्मत तो बेवजह बदनाम है
हमने खुद अपने ही वक्त को आजमाया था,,,!!

जीवन भर हम ठहराते रहे वक्त को ही दोषी....
न्याय-अन्याय के चक्कर में हमने
अपने ही कीमती वक्त को गवाया था
जगाते रहे मन में, मंजिल तक पहुँचने की चाह
रास्ते पर चलने का ख्वाब तक न आया था,,,!!

बिना कुछ सोचे-समझे ही हम लेते रहे.....
अपनी जिंदगी के बड़े बड़े निर्णय...