...

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वो अब "ख़ुद" से ही मुकरने लगी है


कभी उसकी आँखों में भी बेजा
मासूमियत रक़्स किया करती थी!!

पर अब उसकी आँखों में भी ज़माने
भर की विरानियाँ दिखती हैं,
महरूमियाँ दिखती हैं!!

मुस्कुराती तो अब भी है वो,
कभी खुद को छुपाने के लिए,
कभी अपनों की ख़ुशियों के लिए!!

फर्क बस इतना है,
उसकी आँखों में अब ख़्वाब उतरा नहीं
करते!!

होठों पे अब उसके भी बनावटी
मुस्कुराहट सजा करते हैं!!

उसे दोहरेपन और दोहरे रवैय्यों से
कभी बहुत चिढ़ सी थी,
पर ये दोहरापन अब उसकी ज़िंदगी
का अहम हिस्सा है!!

अब वो भी ज़माने भर की
मक्कारियों के साथ जीने लगी है!!

अब वो अपने ही खूबसूरत सोचों
की धज्ज़ियाँ उड़ाने लगी है!!

हाँ, वो अब "ख़ुद" से ही मुकरने लगी है!!

#saaz
© Saaz

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