...

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घमंडी घमंड त्याग देना
ए घमंडी घमंड त्याग देना
इस लोक में घमंड तू मत करना
निर्धन जिस दिन हो जाएगा
मिट्टी में घमंड मिल जाएगा।

ए घमंडी घमंड त्याग देना
सिर ऊंचा करके मत चलना
बृह्माण्ड में तू ही धनी नहीं
हैं धनी यहाँ पर और कोई।

कपड़े तन पर तू घमंड कर रहा
तुझ जैसा घमंडी कोई नहीं
एक बार घूमकर देखो भू पर
विश्व में ऐसा कोई नहीं।

कवियत्री यह कह रही घमंडों
चाहे जितना कर लो परिश्रम
पर घमंड कभी न करना तुम
दिन रात करेंगे बेज्जत जन।

अपना घमंड त्याग दोगे
इस संसार रूपी सागर में तभी ठहर पाओगे
यदि नहीं त्याग सकते घमंड
दुनिया में सदा रहोगे बंद।

ए घमंडी, अब घमंड त्याग तुरंत
तू लुटा रहा पितृ धन को स्वयं
कर तू सकता कुछ नहीं कर्म
पितृ धन पर तू कर रहा घमंड।

ए घमंडी घमंड त्याग तुरंत
ए घमंडी घमंड त्याग तुरंत कर तू सकता कुछ नहीं कर्म
ए घमंडी घमंड त्याग तुरंत
© Neha