...

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छलिया
कहो न प्रियतम
कितने नाम धरोगे तुम
कितने भूषा बदलोगे तुम
प्रेम किया है हमने तुमसे
प्रथम प्रीत का अनुभव जैसे
गाछी में नवल पुष्प हो जैसे
देह गौण था प्रीत में मेरे
शब्दों को ओढ़ा था तेरे
जब जब आओगे तुम
भेष बदल कर
नाम बदलकर
शब्द तुम्हारे साथ चलेंगे
प्रियतम तुम मेरे ही होगे
कहो न प्रियतम
कितने नाम धरोगे तुम
फिर कब उस नाम से मिलोगे तुम।


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