...

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वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे,
बिगड़े हुए इंसान थे,
शैतान की संतान थे।
ना किसी की सुनते थे,
ना ही कुछ करते थे,
बस अपने ज़िद पर अड़े थे,
वो भी क्या दिन थे।

बचपन के वो खट्टे मीठे दिन,
सबसे अलग, सबसे भिन्न।
पूरी मस्ती मज़ाक के साथ
पढ़ाई मे थोड़े आधे-आधे
अब या आते है वो दिन,
जब हम ना रहे सकते थे दोस्तों के बिन,
दोस्तों और माँ- बाप के बने थे जान,
कभी ये पा भी देखना पड़ेगा,
यूँ दोस्तों से जुदा हो जाना पड़ेगा,
कभी भी ना था भान।

ये यादें रहेंगे बरकरार,
ना अब ,ना कभी
ना तोड़ेंगे ये दोस्ती मेरे यार।

वो टीचर से गालिया सुना,
वो क्लास बंक कर आधा लेक्चर वही बिताना,
वो छोटी छोटी लड़ाईयों पर एक दूसरे को हड़काना,
फिर क्लास के बाहर मिल एक लंबी चर्चा करना।
वो प्रिंसिपल से भी...