...

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वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे,
बिगड़े हुए इंसान थे,
शैतान की संतान थे।
ना किसी की सुनते थे,
ना ही कुछ करते थे,
बस अपने ज़िद पर अड़े थे,
वो भी क्या दिन थे।

बचपन के वो खट्टे मीठे दिन,
सबसे अलग, सबसे भिन्न।
पूरी मस्ती मज़ाक के साथ
पढ़ाई मे थोड़े आधे-आधे
अब या आते है वो दिन,
जब हम ना रहे सकते थे दोस्तों के बिन,
दोस्तों और माँ- बाप के बने थे जान,
कभी ये पा भी देखना पड़ेगा,
यूँ दोस्तों से जुदा हो जाना पड़ेगा,
कभी भी ना था भान।

ये यादें रहेंगे बरकरार,
ना अब ,ना कभी
ना तोड़ेंगे ये दोस्ती मेरे यार।

वो टीचर से गालिया सुना,
वो क्लास बंक कर आधा लेक्चर वही बिताना,
वो छोटी छोटी लड़ाईयों पर एक दूसरे को हड़काना,
फिर क्लास के बाहर मिल एक लंबी चर्चा करना।
वो प्रिंसिपल से भी गालियाँ सुनना,
टीचर के वो डाट- फटकार सुनना,
फिर सलाहमति लेने वो दोस्तों के पास जाना
और फिर,
फिर से जैसे का वैसा हो जाना।

वो पेंसिल का पेन मे बदलना,
वो छोटे से बड़े यूनिफॉर्म में बदलना,
2 फुट 4 इंच से 6फुट तक होना,
वो नरसरी के राइमस् से लेकर ट्रिगोनोमेट्री तक,
स्कूल ना जाने के लिए रोने से,
स्कूल ना आने के लिए रोने तक,
वो फटे पुराने जोक्स से लेकर डबल मीनिंग जोक्स तक,
वो बहते ही नाक से लेकर
बहते हुए आँख तक,
नजाने कैसे चले गए ये दिन,
अब बिछड़ के चले जायेंगे यूँ दोस्तों के बिन।

वो भी क्या दिन थे,
जब आगे की ना की फिक्र थी,
ना पीछे हो जाने का गम,
कुछ था तो वो दोस्ती के खूबसूरत पल थे,
वो भी क्या दिन थे,
वो भी क्या दिन थे।

ये खुशी से भरे लम्हे कभी ना मीटे आपके,
यूँ जुदा हो जाने का गम मुख पे कभी ना दिखे आपके,
यूँ आगे जाकर भूलना नहीं,
हर ज़रूरत के समय के लिए दर पर खड़े है आपके।

अब जो बीत गया सो बीत गया आगे की सोचो,
इतना आगे पहुँच गए हो अब पीछे ना देखो,
ये काग़ज़, ये कलम भीग जायेंगे आपके आँसुओं में,
अब ये बारी है आपकी अपनी जिंदगी को रेखो।।
© Sia_

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