...

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मेरी भी सुध
कभी मेरी भी सुध ले लो
कि कोई राह तक रहा है तेरा
कभी भूले बिसरे इस डगर से गुजरो
कि कोई राह तक रहा है तेरा

होगा ठिकाना तेरा कई
पर न होगा कोई ठिकाना स्पर्श जैसा तेरा
वक़्त का है ये फेरबदल,
ऐ ज़िंदगी, कि कोई राह तक रहा है तेरा

अनुशासित, अभिमानी, निर्गुण
निराकारी, साकार हृदय में बसती वो काया तेरा
कौन सी मोह-फांस में बंध,
बेख़बर हो, कि कोई राह तक रहा है तेरा

छोड़ा हृदय के इस पिजड़े को
जब, दिल आवारा पंछी हुआ तेरा
उड़ कर जो गई,
कभी तो सुध लेने आना कि कोई राह तक रहा है तेरा

दिन महीनों का नहीं था नाता,
था ये जन्मों जन्मों से नाता मेरा तेरा
फिर भी न मानूँ दोष तेरा,
करम् गति के इस मोड़ पर कोई राह तक रहा है तेरा

उड़ता पंछी तो दूर चला,
पर निर्मोही, जंगली शब्द गुँजे कानों में तेरा
ये दिल आवारा पंछी,
मनःस्पर्श करना कभी कि कोई राह तक रहा है तेरा

#मनःश्री
#मनःस्पर्श
pic credit to Shlok Shandilya'स्पर्श'