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सैनिक धर्म
मैं हूं एक सैनिक बस इतना सा ही है मेरा अफ़साना ।
न पता किस को मार डालूं न ख़बर बन जाऊं किसका निशाना ।।
मैं लड़ा हूं हर देश और हर एक मज़हब के लिए।
न हुआ कोई देश मेरा ना कोई मज़हब मेरे लिए।।
कत्ल करता और होता रहा हूं हमेशा जंग ए आज़ादी में।
सोचता हूं किस की आज़ादी छिपी है इंसानों की बर्बादी में।‌।
इस पूरे जहां में आदमी से बढ़कर भी क्या कोई आदमखोर होगा।
फूंक डाले जो आशियां अपना ही उसका कहां फिर ठौर होगा।।
इंसानों ने इतना जो बारूद बनाया आखिर किसे मिटाने को।
ये जो कब्र खोद रहे हो क्या खुद का शव दफनाने को।।
तारीखें खूनी कह रही कहानी इंसानों की बर्बरता की।
देख इंसानों पर सितम इंसानी लज्जा रही है पशुता भी।।
नफ़रत का ज़हर भरते हैं दिलों में मज़हब और मज़हबी।
मज़हब के ठेकेदारों ने क्या भला किया है किसी का कभी।।
देखो भाई यह लोग जो प्यारे ईश्वर अल्लाह चिल्लाते हैं।
बस खुदा समझते हैं खुद को फिर खुद पर ही इतराते हैं।।
धर्म की आग लगाते नेता और नीति बाण चलाते हैं।
धर्म और नीति भाई-बहन हैं हम क्यों समझ नहीं पाते हैं।।
इंसानियत है मज़हब, मदद इबादत, रहम ख़ुदा खुद आप हैं।
लानत बाकी धर्मों पर जो इंसानियत के लिए बने अभिशाप हैं।।
खैर छोड़ो जी ये जज़्बाती बातें हक़ीक़त का तुम रखो ध्यान।
एक सिंहासन विशेष की खातिर शेष सारी जनता कुर्बान।।
नेता, व्यापारी, ठग, चोर, जुआरी सबका अलग धर्म ईमान।
लड़ना मरना ही धर्म है मेरा, धर्म के ख़ातिर मैं दूंगा बलिदान।।
धर्म की खातिर मैं दूंगा बलिदान।।
धन्यवाद।।

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