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सैनिक धर्म
मैं हूं एक सैनिक बस इतना सा ही है मेरा अफ़साना ।
न पता किस को मार डालूं न ख़बर बन जाऊं किसका निशाना ।।
मैं लड़ा हूं हर देश और हर एक मज़हब के लिए।
न हुआ कोई देश मेरा ना कोई मज़हब मेरे लिए।।
कत्ल करता और होता रहा हूं हमेशा जंग ए आज़ादी में।
सोचता हूं किस की आज़ादी छिपी है इंसानों की बर्बादी में।‌।
इस पूरे जहां में आदमी से बढ़कर भी क्या कोई आदमखोर होगा।
फूंक डाले जो आशियां अपना ही उसका कहां फिर ठौर होगा।।
इंसानों ने इतना जो बारूद बनाया आखिर किसे मिटाने को।
ये जो कब्र खोद रहे हो क्या खुद का शव दफनाने को।।
तारीखें खूनी...