...

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बसंत_बहार_आई
ऋतुओं की इक ऋतु आई
देखो बसंत बहार आई

गुनगुनाती हुई ये सरसों
यूं ही नहीं है बागों में बरसों
आ रही है बसंत कल परसों

मंद मंद मुस्कुराहट से क्या फ़रमाई
चढ़ती हुई बहार की खुमारी छाई
फिजाओं में ऋतुओं की ऋतु आई

कलियों पे चढ़ता इक निखार है
चारों तरफ आज मौसम-ए-बहार है

बसंत ऋतु के मिज़ाजों का राग
आहिस्ता आहिस्ता छा रहा है फाग
यूं ही नहीं है ये बसंत सुहाग

मां सरस्वती के आव्हान की पुकार है
बसंत ऋतु का च़ढता श्रृंगार हज़ार है
मुस्कुराती हुई बहार का इक निखार है

चहचहाती हुए चिड़ियों की आवाज़
कुछ इस तरह गाती बसंत का अंदाज़

बागों में, बहारों में भंवरों की बातें में
ऋतु का इश्क़ छाया बसंत की शोहरतें में
खिलखिलाते हुए फूलों की मुलाक़ातें में

फिजाओं में नई नई सुगंध का आग़ाज़
कुछ इस तरह है बसंत ऋतु का अल्फ़ाज़
गुनगुनाती तितलियों की इक इक आवाज़

ऋतुओं की इक ऋतु आई
देखो बसंत बहार आई

मन मुक्त हो रही है ये उमंग
अनगिनत फूलों का मिला रंग
नई नई बहार की छा रही है तरंग

आज चारों तरफ बस बधाई ही बधाई
अंगड़ाइयां लेती है बहती ऋतु की पारसाई
देखो देखो बसंत बहार की ऋतु आई

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes