...

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“सांझ”
#सांझ
सांझ को फ़िर निमंत्रण मिला है
दोपहर कल के लिए निकला है
अब उठो तुम है इंतजार किसका
ये दिल हो चला है बीमार इश्क़ का
दिन लेता है करवटें मेरा
सांझ ढल आती है डाल बसेरा
फिर कर रहा है दिल इस शाम में
उतनी ही शिद्दत से इंतजार उसका
चली आती हैं बिन बुलाए यादें
फिर बहने लगी है हल्की हवाएं
शाम आई है फिर लेकर पैग़ाम उसी का
आ गई है रात बहाने लेकर
उसकी यादों का तकिया सिरहाने लेकर
उसके दिए हुए नजराने लेकर
दिल जपता है हर बार नाम उसी का


© ढलती_साँझ