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भोर के पर्दे
#भोरकेपर्दे

कुछ छू गया जेहन को,
सुप्रभात है हर मन को,

पर्दे हटा रहा है,
छुअन से अपनी कोई।
हां मिट रहा अंधियारा,
रोशन किया गगन को।

कब तक तलाश होगी,
कबतक है रहना कायम।
कबतक है यह सवेरा,
मालूम है हर जन को।

हस्ती बनी है जिससे,
जीवन की रोशनी है।
देती बुझा है सबकुछ,
इक मौत सारे तन को।

सिहरन उठा रही है,
रोशन करो यह जीवन।
सिलवट सिखा रही है,
सिंचित करो बदन को।
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