...

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सपने साकार ज़रूर करूंगी
सपने फिरसे पंख लगाए
ऊंचे बादलों को आंखें दिखाए
उमंग फिरसे उड़ने को जो लहराए
हिम्मत बोले “चलो कुछ कर के दिखाए”

आज यहां हूं खोई खोई
कश्मक्षों संग गुमसुम सोई
क्या होगा, कैसे करूंगी, काश! बतादे कोई
सोच सोच के कितनी रातें इन सपनों पे रोई

आज भले ही नाकाम हूं
बिलकुल सबसे गुमनाम हूं
पर ये नही के बेकाम हूं
बस सही रास्तों की शर्तों की गुलाम हूं

जल्द ही सपनो की उड़ान भरूंगी
इस ज़िद को जीने के लिए किस्मत से भी लडूंगी
चुनौतियां जो भी आए, उनसे न मै डरूंगी
अपने सपने जल्द ही साकार करूंगी।
© मिलन