...

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बनारस
ज़मीन-ओ-आसमां है ऐसा आबदार तेरा,
रूह साफ़ करता है ऐ बनारस, दीदार तेरा.

बनती है संवरती है, गंगा में अक्स देखकर
कि हर सुबह को है ऐ बनारस, इंतज़ार तेरा.

ये दैर-ओ-हरम, शिवाले तो हैं ताजदार तेरे,
आरती के दीयों की झिलमिल है गुलहार तेरा.

दयार-ए-रुख़्सती है ये शहर कई ज़मानों का,
जो राख भी बना तेरे भीतर वो है कर्ज़दार तेरा.

जहां सुकून से तर-बतर है हवाएं सारनाथ की,
वहीं सहर-ओ-शाम के जमघट, है त्योहार तेरा.

'ज़र्फ़' बयां करें क्या तारीफ़ में जो पहले न हुईं,
कि तेरी...