...

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मातृ दिवस
नि:स्वार्थ जो उत्थान चाहे,
भर देती जो फूलों से राहें।
कांटो को चुनकर पास रख लें ,
संतान के जो गरल को चख लें।
करुणा को देख ईश भी लजाए ,
ममता को देख धरा भी शरमाएं।
संतान पीड़ा भले ही दे दे,
तब भी सभी वो बला को ले लें।
चिंता नहीं है जिसकी मां है ,
उनके जीवन में हां ही हां है।
मां हमेशा अनपढ़ ही रहती ,
मांगू एक तो दो दे थी देती ।
हे!मां तुझे है नमन शत-शत ,
तेरे कदमों में सिर है नत–नत।



© DRGNRAI