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कभी सोचा ना था
कमाने कि चाह में मैं
जब घर से बेगाना हुआ
दिल पर पत्थर रख,
आंखों में आसूं लिए मंजिल कि खोज में रवाना हुआ...
कभी सोचा ना था कि
कमाई इस कदर रुलाएगी
जब थक-हार कर याद अपने
गांव की गलियों कि आएगी...
कभी सोचा ना था कि
बचपन के सपने जीवन की
इस कदर रगड़-पट्टी करवाएंगे
सांझ होते होते पांव में छाले और आंख में आंसू आएंगे...
कभी सोचा ना था कि
शहर की तंग गलियों में जब
भटकते-भटकते कमीज पसीने से भीग जाएगी
थक-हार कर याद गांव कि शुद्ध हवा की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
यह पिज़्ज़ा, बर्गर और
एक ही दाल सब्जी रोज थाली में परोसी जाएगी
फिर झट से याद घर के खाने की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
संघर्ष के दिनों में जिंदगी इस कदर
घिस घिसकर बे रंग हो जाएगी
तब याद गांव के हरे-भरे खेतों की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
गर्मियों में जब गर्मी और
सर्दियों में धुंध सताएगी
याद फिर पहाड़ों की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
घर से दूर शहर की इन
गलियों में जिंदगी इतनी मैली हो जाएगी
फिर भी उससे मैहक गांव कि मिट्टी की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
बेईमानी के इस सच्चे झूठे दौर में
ईमानदारी की इतनी परीक्षा ली जाएगी
अंततः याद गांव की ईमानदारी की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
बचपन में देखा एक सपना
पूरे जीवन की इस कदर उठक बैठक करवाएगा
फिर भी गांव में बिताया एक एक पल मेरे हृदय से कभी नहीं जाएगा...
© रोबिन ठाकुर
जब घर से बेगाना हुआ
दिल पर पत्थर रख,
आंखों में आसूं लिए मंजिल कि खोज में रवाना हुआ...
कभी सोचा ना था कि
कमाई इस कदर रुलाएगी
जब थक-हार कर याद अपने
गांव की गलियों कि आएगी...
कभी सोचा ना था कि
बचपन के सपने जीवन की
इस कदर रगड़-पट्टी करवाएंगे
सांझ होते होते पांव में छाले और आंख में आंसू आएंगे...
कभी सोचा ना था कि
शहर की तंग गलियों में जब
भटकते-भटकते कमीज पसीने से भीग जाएगी
थक-हार कर याद गांव कि शुद्ध हवा की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
यह पिज़्ज़ा, बर्गर और
एक ही दाल सब्जी रोज थाली में परोसी जाएगी
फिर झट से याद घर के खाने की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
संघर्ष के दिनों में जिंदगी इस कदर
घिस घिसकर बे रंग हो जाएगी
तब याद गांव के हरे-भरे खेतों की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
गर्मियों में जब गर्मी और
सर्दियों में धुंध सताएगी
याद फिर पहाड़ों की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
घर से दूर शहर की इन
गलियों में जिंदगी इतनी मैली हो जाएगी
फिर भी उससे मैहक गांव कि मिट्टी की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
बेईमानी के इस सच्चे झूठे दौर में
ईमानदारी की इतनी परीक्षा ली जाएगी
अंततः याद गांव की ईमानदारी की आएगी...
कभी सोचा ना था कि
बचपन में देखा एक सपना
पूरे जीवन की इस कदर उठक बैठक करवाएगा
फिर भी गांव में बिताया एक एक पल मेरे हृदय से कभी नहीं जाएगा...
© रोबिन ठाकुर
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