व्यग्र मन
व्यग्र मन स्पंदित हुआ
जब तरंग उठा विकराल
बांधे कहाँ बंध सका
न हुआ अमर ही काल
वक्त की धारा...
जब तरंग उठा विकराल
बांधे कहाँ बंध सका
न हुआ अमर ही काल
वक्त की धारा...