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व्यग्र मन
व्यग्र मन स्पंदित हुआ
जब तरंग उठा विकराल
बांधे कहाँ बंध सका
न हुआ अमर ही काल
वक्त की धारा चले ऐसे
देखे कहू ना चाल
सुरमा भी चाटे धूल
बुने समय जब जाल
परित्यक्त को पूछे कौन
केवल हरि के हाल
हरि दर्शन पावन मिले
क्षण में गुजरे साल
© sushant kushwaha
जब तरंग उठा विकराल
बांधे कहाँ बंध सका
न हुआ अमर ही काल
वक्त की धारा चले ऐसे
देखे कहू ना चाल
सुरमा भी चाटे धूल
बुने समय जब जाल
परित्यक्त को पूछे कौन
केवल हरि के हाल
हरि दर्शन पावन मिले
क्षण में गुजरे साल
© sushant kushwaha
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