...

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खेल कामनाओं का
धुन : आरंभ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड ( पीयूष मिश्रा ) 🙏

जीत की हवस है क्यों ?
ना खुद पे कोई वश है क्यों ?
बस भागना क्या जिंदगी ?
मन शांत क्यों नहीं कहीं ?
क्यों मन उथल पुथल रहा ?
क्यों सवाल ये मचल रहा ?
तुम खुद से ये सवाल पूछना शुरू करो
तुम्हारा सत्य क्या है सोचना शुरू करो 🤡

कमी है कुछ क्या खल रहा
क्यों मन में द्वंद चल रहा
क्यों मन तेरा उदास है
क्यों आग में तु जल रहा
क्यूं कल तुझे डरा रहा
क्यों विश्वास डगमगा रहा
क्यों चाहतें असीम हैं ये ?
सच में क्या नसीब है ये ?
तुम खुद से ये सवाल पूछना शुरू करो
तुम्हारा सत्य क्या है सोचना शुरू करो 🤡

हवस मिली जिसे अथाह
उसे इश्क की तलाश क्यों ?
है इश्क मिल गया जिसे
उसे जिस्म की है प्यास क्यों ?
दिल भरा पड़ा है फिर
क्यों दिल ये रो नहीं रहा ?
ये खेल कामनाओं का
क्यों खत्म हो नहीं रहा ?
तुम खुद से ये सवाल पूछना शुरू करो
तुम्हारा सत्य क्या है सोचना शुरू करो 🤡

आंख बंद कर, एकांत कर
भटकते मन को शांत कर
मुश्किल डगर तू लड़के देख
कभी तो ध्यान तु करके देख
दुख दर्द तेरा बस भ्रम है
खेल माया का इक भ्रम है
नश्वर अजर अमर है तू
तू ही है शिव, तू ब्रह्म है
तू ही है शिव, तू ब्रह्म है
🤡❣️🤡


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© Dr. Joker