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बिखरे अल्फाज़
कोरे पन्ने पे,
बिखरे अल्फाज़,
करें दर्द का बस आगाज़।
रंगे स्याही में,
निभा रहे रिवाज़,
अनूठे दिखा कर अंदाज़।
सिमटे हुए से,
देते किसे आवाज़?
जैसे नादान होते परवाज़।
कैसे कहें के?
करके नज़रअंदाज़,
बजाये खामोशी का साज़।
© Navneet Gill
बिखरे अल्फाज़,
करें दर्द का बस आगाज़।
रंगे स्याही में,
निभा रहे रिवाज़,
अनूठे दिखा कर अंदाज़।
सिमटे हुए से,
देते किसे आवाज़?
जैसे नादान होते परवाज़।
कैसे कहें के?
करके नज़रअंदाज़,
बजाये खामोशी का साज़।
© Navneet Gill
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