...

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सपनों की सीढ़ी
शोर करती रही चुप्पी
जब दशकों के बसंत बाद
वो मिले एक जेठ की दोपहर
और धूप की आंच संग पिघल गई
अधूरे अरमानों के पंख
पूरी बातों की पतंग
जो बाच कर रखे थे उन्होंने बरसों तक।

पुकारने लगते हैं पुराने नोट
जो दबे रहते हैं
अनाज-राशन के डिब्बों में
टूटते सपनों पर चिप्पी लगाने
और पंख दे जानें
निकाल रख...