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वीर-जवान
"वीर जवान"
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दिल राजी है, ईमान राजी है।
वतन के खातिर, यह जान हाजिर है ।
वतन पर मर मिटने को जज़्बात राजी है ।
लुट जाऊं, मिट जाऊं, बिक जाऊं वतन के खातिर जान हाजिर है।
वतन के खातिर दिल में सुलगते अरमान कुर्बान।
वतन के आगे प्रियतमा का प्यार भी बेमानी है।
पत्नी की आस, मां बाबा का इंतजार भी लाजमी है पर,
देश की सुरक्षा से बढ़कर ना कोई ख्याल राजी है।
मातृभूमि का कर्ज चुकाने को वतन का सिपाही हाजिर है।
जीना और मरना वतन के वास्ते उसके लिए अपने सारे सपने न्योछावर है।
कर ना पाए कोई दुश्मन,
मेरे देश का एक बाल भी बांका,
जबतक मेरे रक्त के कतरे-कतरे में उबाल बाकी है!
मिला दूं ना जबतक, दुश्मनों को खाक में।
तब तक मेरे जिगर में प्राण बाकी है।
जबतक ना फहरादूं अपने देश का तिरंगा शीर्ष पर,
तब तक अपनी मौत से, जिंदगी उधार मांगी है।
कर दूं ना जब तक बाबा का सर ऊंचा,
मां का सीना गर्व से चौड़ा,
तबतक अपने सांसों से कुछ धड़कनें उधार मांगी है।
फ़ना होने से पहले अंतिम बार देख लूं,
अपनी पॉकेट से निकाल, अपनी महबूबा की तस्वीर।
उस पल तक अपनी आंखों से रोशनी उधार मांगी है।

माधुरी राठौर, ✍️