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  "जीवन का आधार पर्यावरण"
  "जीवन का आधार पर्यावरण"
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कितना सुंदर हरा-भरा कुदरत का यह नजारा हैं।
कई पानी के झरने, कई ऊँचे ऊँचे पहाड़
कई शुद्ध हवा का ठहरना,कई रंग बिरंगी फूलों का महकना,
कई नदियों तालाब की सुंदर वादियां कई वृक्ष की हरियालिया

यही तो हमारा स्वर्ग हैं। यही हमारा पर्यावरण हैं।

बसंत बहार में झाड़ो के पत्तों का झिलमिलाना।
बारिश के बूँद बूँद से खेत मे हरियाली छाना।
सुबह सुबह सुरज की किरणों का दस्तक देना।
पंछियों का आकाश में ऊँची उड़ाने भरना।

यही जीने का आधार हैं। यही हमारा पर्यावरण हैं।

आज इस चकाचौंध की दुनिया पर्यावरण को भूल गई।
शुद्ध हवा की हरियाली न जाने कहा खो गई।
नदियों को गंदा करके उसे अस्वच्छ बना रहे हैं।
नई नई बीमारियों को आवाज दे रहे है।

ठंडी छांव के वृक्ष को हम काट रहे है।
पशु पक्षीयों का आशियाना उनसे छीन रहे हैं।
जंगल तो रहा ही नहीं कहा जाएंगे वन्यजीव?
इस स्वार्थी इन्सान ने उन्हें भी नहीं छोड़ा।
वृक्ष से हमे ऑक्सीजन मिलता है ये भुल गया।


गंगा मैंया प्यास बुझाती हैं। उसे भी मैला बना दिया।
"जल हैं तो जीवन हैं"यह भी इन्सान भुल गया।

वक़्त नहीं हैं गुजरा अब भी संभल जाओ।
पानी के हर बूंद बूंद को बचाओ।

वरना नहीं रहेंगी ये वादियां, ये सुंदर नदियां।
कुदरत के ऊंचे ऊंचे पर्वतों की निर्मल झांकिया।
नहीं रहेंगे ठंडी छाव वाले हरे-भरे वृक्ष।
नहीं दिखेगी सुरज की सुबह की मुस्कुराहट।

वक्त नहीं हैं गुजरा अब भी संभल जाओ।
हर साल एक वृक्ष को जरूर लगाओ।

आओ आज की युवा पिढ़ी मिलकर पर्यावरण
को बचाते हैं। स्वच्छ सुंदर देश को बनाते है।
"वृक्ष लगाओ, पानी बचाओ" यह संदेश पहुचाते हैं।

इस पर्यावरण दिवस को नई शुरुवात करते हैं।
पर्यावरण को बचाते हैं। पृथ्वी को स्वर्ग बनाते हैं।

लेख़क : सुरज तायडे