चान्दनी रात
आखिर लंबे मेहनतकश दिन के बाद
आयी सुहानी ,शीतल चान्दनी रात
सब जनो को अपनी शीतल बाहों मे समेट
इठलाती है मान नायिका की तरह ठेठ
सब जनो को यह रात महसूस हुई अपने भावावेग मे
एक मजदूर को लगती है थकान उतारने वाली
ऐसा महसूस होता है जैसे सुलाती है थपकी देकर मतवाली
एक कला के उपासक को लगती कला शोधन वाली
गीतकार को अपनी खोयी धुन
प्रेयसी को लगती है प्रेमालाप सी
बच्चों को लगती है ममतामयी ...
आयी सुहानी ,शीतल चान्दनी रात
सब जनो को अपनी शीतल बाहों मे समेट
इठलाती है मान नायिका की तरह ठेठ
सब जनो को यह रात महसूस हुई अपने भावावेग मे
एक मजदूर को लगती है थकान उतारने वाली
ऐसा महसूस होता है जैसे सुलाती है थपकी देकर मतवाली
एक कला के उपासक को लगती कला शोधन वाली
गीतकार को अपनी खोयी धुन
प्रेयसी को लगती है प्रेमालाप सी
बच्चों को लगती है ममतामयी ...