...

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समझ नहीं आता
इश्क में अश्क या अश्कों से इश्क समझ नहीं आता
दर्द है... अच्छा भी है... क्यों है...समझ नहीं आता

खुद के वज़ूद को सब कुछ समझने वाले थे हम
कभी खुद को खो दिया, कैसे उसके हो गए समझ नहीं आता

खूबसूरती की भी कोई हद होगी, वो हदो मे भी खूबसूरत है।
उसका आँखों से बोल कर लबों से खामोश हो जाना समझ नहीं आता

रास्ते बंद है सारे.... फ़िर भी लफ्ज़ चले आते है...
उससे बात होने के बाद, सबसे तन्हा हो जाना समझ नहीं आता

रंग ओ बू से सजी क़ायनात मे, उसकी सादगी खींच रहीं हैं।
देखने की ख्वाहिश होने पर, उसका पलकें झुका जाना समझ नहीं आता

उसकी तहज़ीब का अलग चेहरा है, आंखे बताती है वो शख्स बहुत गहरा है
बिना खता ही शर्मिंदा हो जाता है, यूँ खताओं को अपने नाम कर जाना समझ नहीं आता

ये राहें बड़ी खूबसूरत है... बेवफ़ाई दरवाजा खटखटा रहीं है।
खुशियो से अदावते निभाकर, ग़मों से यारी निभाना समझ नहीं आता


© Mγѕτєяιουѕ WriteR